अफगानिस्तान समस्या, विशेष तथ्य

अफगानिस्तान समस्या, विशेष तथ्य


15 अगस्त 2021को तालिबन आतंकियो ने काबूल पर कब्जा कर लिया। इसकी पटकथा, 29 फरवरी 2020 को क़तर की राजधानी दोहा में अमरीका और तालिबान के बीच शांति समझौते पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी। अमरीका और तालिबान के बीच लम्बी वार्तायें चलीं जो गुप्त थीं और जिनसे अफगान सरकार तथा सेना को बाहर रखा गया। उस अवैध समझौते के अन्तर्गत 31 अगस्त 2021तक अमरीकी सेना को अफगानिस्तान से निकल जाना था और अमरीकियों पर तालिबान को आक्रमण नहीं करना था। बाइडेन ने 31 अगस्त से पहले ही तालिबान को अफगानिस्तान पर आक्रमण करके आधिपत्य करने का अवसर दिया। अमेरिकन राष्ट्रपति ने अफगान सरकार सहित पूरे संसार को धोखा दिया। यही नहीं अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडेन ने जुलाई 2021 में बयान दिया था कि तालिबान से कई गुणी अधिक शक्ति अफगानी सेना की है, जिस कारण तालिबान कुछ नहीं कर सकेगा। सुपरपॉवर ने सुपर धोखा दिया। इसपर अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति ट्रम्प ने कहा “विश्व इतिहास में पहली बार किसी आतंकी संगठन को किसी सार्वभौम राष्ट्र की सत्ता सौंपी गयी है जिसके लिये बाइडेन को त्यागपत्र देना चाहिये।“ काबुल में जो कुछ भी हुआ है उसके विरोध में सबसे अधिक लोग आज अमरीका में प्रदर्शन कर रहे हैं। आज अफगानिस्तान पर तालिबान आतंकियो का कब्जा,विश्व समुदाय के लिए एक गंभीर खतरा बनकर खड़ा है। इस समस्या पर महत्वपूर्ण तथ्य इसप्रकार हैं :-

1 तालिबान को सत्ता अमरीका ने ही सौंपी है। बाइडेन ने ही अफगान सरकार को गलत सूचना देकर गुमराह और निश्चिन्त किया। बाइडेन ने ही यह सूचना भी छुपाई कि अफगान सेना के अधिकांश अधिकारी बिक चुके हैं।तालिबान से जमीनी लड़ाई मुख्यतः अफगान सेना ही २० वर्षों से लड़ रही थीअमरीका केवल हवाई सहायताशस्त्र एवं प्रशिक्षण् देता था। अमरीकी लोग विलासी होते हैंसम्मुख युद्ध करने से कतराते हैं । दूर से मिसाइल मारते हैं । २० वर्षों से अफगान सेना लड़ रही थी२० वर्षों तक नहीं बिकी क्योंकि तब खरीदने वाला कोई नहीं था ।

2) अफगानिस्तान की वैध सरकार को किनारे रखकर अमरीका और तालिबान के बीच समझौता अवैध था ।

3) अमरीका को अफगानिस्तान से भागना ही था तो सीधे भाग जातातालिबान से गुप्त समझौता करने की क्या आवश्यकता थी

4) बाइडेन ने ३१ अगस्त से पहले ही तालिबान को अफगानिस्तान पर आक्रमण करके आधिपत्य करने का अवसर दिया । ट्रम्प का समझौता राजनैतिक समाधान वाला थायद्यपि ट्रम्प जानते थे कि आतंकी संगठन से ऐसी आशा करना निरर्थक है कि तालिबान आतंकवाद त्यागकर अचानक लोकतान्त्रिक बन जायगा ।

5) तालिबान के लिये अमरीका ने विश्व के सर्वोत्तम शस्त्र छोड़ दिये जिनके संचालन के लिये अब CIA के कहने पर पाकिस्तान के प्रशिक्षित सैनिक और तकनीशियन तालिबान के वेश में लड़ेंगे ।

6) तालिबान की विजय युद्ध में नहीं हुईCIA द्वारा षडयन्त्र करके अफगान सेनानायकों को फोड़ने के कारण हुई । बाद में यही लोग तालिबान के वेश में कश्मीर आयेंगे और पाकिस्तान कहेगा कि पाकिस्तान को इससे कोई सरोकार नहीं है ।

7)बाइडेन की यही योजना है । भारत को युद्ध में घसीटा जायगा तो अमरीका के शस्त्र बिकेगे।

8) बाइडेन का झूठ इस बात से पकड़ाता है कि उनका कहना है कि रूस और चीन चाहते हैं कि अमरीका सदा के लिये अफगानिस्तान में फँसा रहे । रूस और चीन ही नहींऐसी बात किसी देश ने नहीं कही । रूस और चीन तो कह रहे हैं कि धीरे−धीरे सावधानी से निकलते ताकि तालिबान के हाथ में सत्ता न जाय । झूठ वही बकता है जिसके मन में खोट हो ।

9) अफ़ग़ानिस्तान की तीन मध्य एशियाई देशों से सीमाएं भी मिलती हैं. ताजिक्स्तान के साथ करीब 1300 किमी., उज़बेकिस्तान के साथ 137 किमी. और तुर्कमेनिस्तान के साथ 700-800 किमी. की सामी है. तालिबान के साथ रिश्ते खराब होना रूस की सुरक्षा के लिए ख़तरानाक हो सकता है।

10) अफ़ग़ान-तालिबान शांति वार्ता को लेकर रूस में पहले भी बैठक हो चुकी है. अफ़गानिस्तान शांति प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए 18 मार्च को रूस की राजधानी मॉस्को में एक सम्मेलन हुआ । इसके बाद नवंबर 2018 में रूस में तालिबान को बातचीत के लिए बुलाया गया था । फरवरी 2019 में भी मॉस्को में तालिबान के साथ बैठक हुई थी लेकिन इसमें अफ़ग़ान सरकार शामिल नहीं थी. इसमें अफ़ग़ानिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई ने हिस्सा लिया था।


11) अफगानिस्तान के मामले मे संयुक्त राष्ट्र संघ एकदम नकारा साबित हुआ। इस संघ का मुख्य उद्देश्य विश्व शांति बनाए रखना है, इस मामले मे वह मात्र एक दर्शक की भूमिका में है ।


12) भारत इस समस्या पर गंभीर है। सुरक्षा परिषद की बैठक की अध्यक्षता वर्तमान मे (अगस्त 2021, सिर्फ एक माह के लिए) भारत के पास है । यध्यपि सुरक्षा परिषद की बैठक रूस ने बुलायी थी। क्या तालिबान को संयुक्त राष्ट्र से मान्यता दिलाने के लिये बैठक बुलायी थी सुरक्षा परिषद में रूस और चीन कह रहे हैं कि अमरीका को अचानक नहीं भागना चाहियेजिसका सीधा अर्थ है कि रूस और चीन के अनुसार तालिबान को सत्ता नहीं मिलनी चाहिये, जो अमरीका की गलती के कारण मिली।